Business

भू-तापीय ऊर्जा से ऊर्जा संकट का समाधान संभव: एमआईटी डब्ल्यूपीयू सम्मेलन में विशेषज्ञों की राय

पुणे। भारत में 300 गर्म झरनों में लगभग 10 गीगावाट की अनुमानित ऊर्जा क्षमता है, लेकिन देश में अब तक भू-तापीय ऊर्जा (Geothermal Energy) का व्यावसायिक उत्पादन शून्य है। यदि इस अपार ऊर्जा स्रोत का प्रभावी उपयोग किया जाए, तो यह भारत की बढ़ती ऊर्जा मांग को पर्यावरण के अनुकूल तरीके से पूरा करने में मददगार हो सकता है। यह विचार एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान उभरकर सामने आए। यह आयोजन इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ ड्रिलिंग कॉन्ट्रैक्टर्स (IADC) के छात्र चैप्टर द्वारा किया गया था, जो भारत में इस वैश्विक संगठन का एकमात्र छात्र चैप्टर है।

भारत में भू-तापीय ऊर्जा की संभावना

एमआईटी डब्ल्यूपीयू के पेट्रोलियम इंजीनियरिंग विभाग के कार्यक्रम निदेशक, प्रो. राजीब कुमार सिंहारे, ने कहा, “भारत के पास हिमालय, सोन-नर्मदा-ताप्ती बेसिन, महाराष्ट्र और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह जैसे क्षेत्रों में भू-तापीय संसाधन उपलब्ध हैं। कई तेल कुओं में उपसतह तापमान अधिक है, जिसका सही तरीके से उपयोग किया जाए तो ये क्षेत्र ऊर्जा का बड़ा स्रोत बन सकते हैं।”

उन्होंने बताया कि ओएनजीसी जम्मू और कश्मीर के पुगा घाटी में 1 मेगावाट की सतही ऊर्जा परियोजना के लिए ड्रिलिंग कर रही है। भू-तापीय ऊर्जा के व्यावसायिक विकास से न केवल ऊर्जा संकट का समाधान होगा, बल्कि यह भारत के ऊर्जा मानचित्र में महत्वपूर्ण बदलाव भी ला सकती है।

पेट्रोलियम उद्योग की चुनौतियों पर चर्चा

सम्मेलन में ओएनजीसी के निदेशक ओम प्रकाश सिंह और IADC के क्षेत्रीय निदेशक लार्स निडाल जोर्गेनसन सहित कई विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया। सिंह ने छात्रों को पेट्रोलियम उद्योग में मौजूद चुनौतियों और अवसरों के बारे में अवगत कराते हुए कहा, “तकनीक और डिजिटलीकरण के युग में, उद्योग नवीन समाधानों को तेजी से अपना रहा है। छात्रों को विभिन्न क्षेत्रों के साथ मिलकर काम करने और ऊर्जा उद्योग में नवाचार लाने की जरूरत है।” उन्होंने पेट्रोलियम के क्षेत्र में IoT (इंटरनेट ऑफ थिंग्स) के उपयोग से भविष्य में संभावनाओं पर भी जोर दिया।

नीतिगत सहयोग और निवेश की संभावनाएं

सम्मेलन में उपसतह ऊर्जा परियोजनाओं के किराये, लाभ साझाकरण, और सरकारी नीतियों पर भी चर्चा हुई। विशेषज्ञों ने बताया कि उपसतह ऊर्जा के लिए टर्नकी समाधान और तकनीकी एकीकरण आवश्यक हैं, ताकि परियोजनाओं को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाया जा सके। इसके साथ ही, उपसतह ड्रिलिंग के लिए सब्सिडी की भूमिका पर भी जोर दिया गया ताकि ऑपरेटरों को प्रोत्साहित किया जा सके।

IADC, जिसकी स्थापना 1940 में हुई थी, एक वैश्विक संघ है जो ड्रिलिंग ठेकेदारों का प्रतिनिधित्व करता है। IADC का छात्र चैप्टर छात्रों को अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों और ऊर्जा उद्योग से जुड़ने का मौका देता है, जिससे वे इस क्षेत्र में व्यावहारिक अनुभव प्राप्त कर सकें।

Related Articles