नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने स्कूल शिक्षा से जुड़े एक अहम फैसले में 5वीं और 8वीं कक्षा के छात्रों के लिए “नो-डिटेंशन पॉलिसी” में बदलाव किया है। अब स्कूल इन कक्षाओं में छात्रों को फेल कर सकते हैं। यह फैसला शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने और छात्रों की सीखने की क्षमता को बेहतर बनाने के उद्देश्य से लिया गया है।
क्या है नो-डिटेंशन पॉलिसी?
“नो-डिटेंशन पॉलिसी” के तहत 8वीं कक्षा तक किसी भी छात्र को फेल नहीं किया जाता था। इस नीति को यह सुनिश्चित करने के लिए लागू किया गया था कि बच्चे बिना किसी मानसिक दबाव के अपनी शिक्षा पूरी कर सकें। हालांकि, समय के साथ इस नीति की आलोचना भी हुई, क्योंकि कई शिक्षाविदों का मानना था कि इससे छात्रों की पढ़ाई पर नकारात्मक असर पड़ा है।
फेल होने का नया नियम
सरकार के नए निर्देश के तहत:
1. 5वीं और 8वीं कक्षा के छात्रों को उनकी वार्षिक परीक्षा के प्रदर्शन के आधार पर फेल किया जा सकता है।
2. यदि कोई छात्र फेल होता है, तो उसे एक और मौका देते हुए “री-एग्जाम” का प्रावधान होगा।
3. री-एग्जाम में असफल रहने पर ही छात्र को फेल माना जाएगा।
फैसले का उद्देश्य
शिक्षा मंत्रालय के अनुसार, यह कदम छात्रों की पढ़ाई के प्रति गंभीरता बढ़ाने और स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए उठाया गया है।
शिक्षा विशेषज्ञों की राय
इस निर्णय पर शिक्षा विशेषज्ञों की मिली-जुली प्रतिक्रिया है। कुछ का मानना है कि यह कदम शिक्षा प्रणाली को मजबूत करेगा, जबकि अन्य इसे छात्रों पर अतिरिक्त दबाव डालने वाला बता रहे हैं।
अभिभावकों और शिक्षकों की भूमिका
सरकार ने अभिभावकों और शिक्षकों से अपील की है कि वे बच्चों को प्रोत्साहित करें और उन्हें पढ़ाई के प्रति प्रेरित करें, ताकि फेल होने की स्थिति न आए।