हाल ही में दो जाटव नेताओं ने अपनी जाति के प्रति निष्ठा दिखाते हुए, एक झटके में वंचित वर्ग का साथ छोड़ दिया और बहुजन एकता और अंबेडकर आंदोलन को भुला दिया। इस घटना ने वंचित वर्ग के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है: अब समय आ गया है कि वे खुद अपने हक़ और अधिकारों के लिए लड़ें, किसी मसीहा का इंतजार न करें।
### वंचित वर्ग को चाहिए आत्मनिर्भरता और एकता
पूरे देश में वंचित वर्ग के लिए वर्गीकरण लागू कराना और अपनी तरक्की के रास्ते खुद चुनना बेहद जरूरी है। एकता के नाम पर अब और ठगे जाने का समय नहीं है। अपने बच्चों के भविष्य को संवारें और आने वाली पीढ़ियों की स्थिति को बदलें। ऐसी एकता का क्या मतलब, जो आपको आगे बढ़ने से रोकती हो?
### जाति प्रेम या बहुजन एकता?
जब इन नेताओं ने अपना जाति प्रेम दिखाया है, तो वंचित वर्ग के लोगों को भी अपनी जाति की तरक्की के बारे में गंभीरता से सोचना होगा। अब यह दोनों नेता जाटव नेता हैं, न कि बहुजन नेता। वंचित वर्ग को अब आत्मनिर्भर होकर अपनी स्थिति सुधारने की जरूरत है।