नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ऐतिहासिक कुवैत यात्रा सुर्खियों में है। यह यात्रा 1991 के खाड़ी युद्ध के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली कुवैत यात्रा है। दो दिवसीय दौरे पर पहुंचे पीएम मोदी ने भारत-कुवैत के मजबूत होते रिश्तों को नई दिशा दी।
1991 का खाड़ी युद्ध और भारत का धर्मसंकट
1991 में इराक ने कुवैत पर हमला कर कुछ ही दिनों में कब्जा कर लिया था। इस घटना ने पूरे अरब क्षेत्र की राजनीति को हिला कर रख दिया। इराक उस समय क्षेत्रीय शक्ति के रूप में उभर रहा था, लेकिन लंबे ईरान-इराक युद्ध और आर्थिक संकट ने उसे कुवैत जैसे समृद्ध देश पर हमला करने के लिए प्रेरित किया। सद्दाम हुसैन की सरकार ने कुवैत को इराक का हिस्सा घोषित कर दिया, जिससे पश्चिमी देशों ने इराक के खिलाफ सैन्य अभियान शुरू कर दिया।
भारत के लिए यह स्थिति बेहद संवेदनशील थी। इराक भारत का अच्छा मित्र देश था, जो कश्मीर मुद्दे पर भारत का समर्थन करता था। लेकिन, नीतिगत रूप से कुवैत पर हमले को सही ठहराना मुश्किल था। उस समय विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार ने कुवैत से भारतीयों को निकालने का सबसे बड़ा अभियान चलाया, जिसे दुनिया ने सराहा।
भारत-कुवैत रिश्तों का नया अध्याय
इराक-कुवैत विवाद के दौरान भारत ने खुद को किसी पक्ष में शामिल नहीं किया। इसने कुवैत में थोड़ी नाराजगी पैदा की, लेकिन समय के साथ दोनों देशों के रिश्ते बेहतर होते गए। कोरोना महामारी के दौरान भारत ने कुवैत को मेडिकल सप्लाई और वैक्सीन के जरिए बड़ी मदद दी, जिसने दोनों देशों के संबंधों को नई ऊंचाई दी।
आज कुवैत में 10 लाख भारतीय
कुवैत में आज करीब 10 लाख भारतीय काम कर रहे हैं, जो देश के विकास में अहम भूमिका निभा रहे हैं। वहां के अमीर और जनता के दिल में भारतीयों के प्रति गहरा सम्मान है।
प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा से भारत-कुवैत संबंधों में और मजबूती आने की उम्मीद है। यह दौरा सिर्फ कूटनीतिक नहीं बल्कि ऐतिहासिक भी है, जो दोनों देशों के आपसी सहयोग और विश्वास को और गहरा करेगा।