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राजेश तिवारी: यूपीएससी में असफलता की कहानी और जातिगत भेदभाव का मुद्दा

लखनऊ: राजेश तिवारी, 29 वर्षीय और एम.ए. (इतिहास) के छात्र, भारत के सबसे कठिन परीक्षा यूपीएससी में 643 अंक प्राप्त करने के बावजूद असफल रहे हैं। सात लोगों के परिवार के अकेले कमाने वाले सदस्य राजेश ने कड़ी मेहनत के बावजूद सफलता हासिल नहीं की, जो कि कई छात्रों के लिए प्रेरणा का विषय बन गया है।

राजेश की असफलता का मुख्य कारण जातिगत भेदभाव को बताया जा रहा है। उन्होंने दावा किया है कि जनरल श्रेणी में ब्राह्मण परिवार में पैदा होने के कारण उन्हें बाहर कर दिया गया, जबकि तथाकथित शूद्र जातियों के छात्रों को जनरल श्रेणी के लिए न्यूनतम अंक 501 और अन्य जातियों के लिए 689 तक प्राप्त करने का मौका मिला।

राजेश के अनुसार, इस भेदभावपूर्ण प्रणाली के कारण, कई मेहनती छात्र पीछे रह जाते हैं और समाज में उचित अवसर पाने के लिए संघर्ष करते हैं। उनका मानना है कि यदि सरकार इस मुद्दे पर मौन रहती है, तो आने वाले समय में यह समस्या और बढ़ सकती है, और जनरल श्रेणी के छात्रों के लिए सरकारी नौकरी पाना एक सपना ही रह जाएगा।

राजेश की कहानी उन लाखों छात्रों की स्थिति को उजागर करती है, जो अपनी मेहनत और क्षमताओं के बावजूद जातिगत भेदभाव के कारण सफलता से वंचित रह जाते हैं। सरकारी नीतियों में सुधार की आवश्यकता है, ताकि सभी वर्गों के छात्रों को समान अवसर प्राप्त हो सकें और वे अपने सपनों को साकार कर सकें।

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