जब भारत से पेशावर तक जाती थी शाही डाक: हर 25 किलोमीटर पर बदलते थे घुड़सवार

नई दिल्ली: इतिहास के पन्नों में झांकने पर पता चलता है कि शेर शाह सूरी द्वारा स्थापित सूरी साम्राज्य के दौरान भारत से पेशावर तक शाही डाक भेजने के लिए एक अद्वितीय व्यवस्था थी। जालंधर के नकोदर और ओल्ड जीटी रोड के किनारे आज भी खड़ी कोस मीनारें इस इतिहास की गवाह हैं। इन मीनारों का निर्माण शेर शाह सूरी ने करवाया था, जो शाही डाक की गति बढ़ाने और दिशासूचक के रूप में कार्य करती थीं।

प्रत्येक कोस (लगभग 20-25 किलोमीटर) के बाद घुड़सवार बदल दिए जाते थे, और इस तरह शाही डाक पेशावर तक पहुंचाई जाती थी। एक अनुमान के अनुसार, ये घुड़सवार 24 घंटे में लगभग 250 किलोमीटर का सफर तय कर लेते थे।

जालंधर और लुधियाना में कोस मीनारें शेर शाह सूरी ने 1540 में हुमायूं को हराकर सूरी साम्राज्य की नींव रखी थी, और ओल्ड जीटी रोड का निर्माण कर इसे भारत की सबसे महत्वपूर्ण सड़कों में से एक बना दिया। पंजाब में आज भी जालंधर में 12 और लुधियाना में 6 कोस मीनारें खड़ी हैं। ये मीनारें, जो उस समय शाही डाक और दिशासूचक का कार्य करती थीं, अब पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित हैं।

जालंधर के प्रमुख स्थानों जैसे चीमा कलां, दक्खणी, जहांगीर, नगर, नकोदर, नूरमहल और वीर पिंड में कोस मीनारें आज भी मौजूद हैं, जो इतिहास की इस महत्वपूर्ण डाक व्यवस्था की याद दिलाती हैं।

हरकारों की दौड़ इस प्रणाली में घुड़सवारों के अलावा हरकारे भी शामिल थे, जो दौड़ते हुए डाक पहुंचाते थे। हर हरकारा 5 किलोमीटर की दूरी तय करता और अगले हरकारे को पत्र सौंप देता, जो इसे आगे बढ़ाता था। यह प्रणाली भी कोस मीनार की तरह शाही डाक के तेज वितरण के लिए बेहद महत्वपूर्ण थी।

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