क्या 78वें स्वतंत्रता दिवस पर भगत सिंह और क्रांतिकारियों को मिलेगा शहीद का दर्जा?

आज भी भारत में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव जैसे हजारों क्रांतिकारियों को आधिकारिक रूप से शहीद का दर्जा नहीं मिला है। यह सवाल खड़ा करता है कि क्या सरकार उन वीरों को स्वतंत्रता सेनानी और देशभक्त नहीं मानती, जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष किया था?

आज भी ब्रिटेन के राजा को बिना भारत की अनुमति, यानी बिना वीजा के भारत आने का अधिकार है, जबकि भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को ब्रिटेन जाने के लिए वीजा की आवश्यकता होती है। इतना ही नहीं, दिल्ली के बुराड़ी में जहां जॉर्ज पंचम का राज्याभिषेक हुआ था, वहां अंग्रेजी शासकों की मूर्तियां और विजय स्तंभ अब भी खड़े हैं।

भारत के सरकारी दफ्तरों में आम ग्रामीण आज भी अधिकारियों, दरोगा, और डीएम से वैसे ही डरता है जैसे ब्रिटिश शासन के समय डरता था। हमारे तंत्र ने भले ही संविधान बनाया हो, लेकिन गुलामी के कानूनों को नहीं बदला। संविधान और कानून में फर्क होता है, और हमारा तंत्र अब भी गुलामी के कानूनों के तहत संचालित हो रहा है।

यह भी देखा जा रहा है कि भारतीयों से तमाम कर लिए जा रहे हैं जिनका लाभ उन्हें कभी नहीं मिलता। इससे यह सवाल उठता है कि क्या हमारा तंत्र अभी भी गुलामी के चंगुल में है?

क्या इस 78वें स्वतंत्रता दिवस पर सरकार भगत सिंह और अन्य क्रांतिकारियों को शहीद का दर्जा देगी, यह देखने वाली बात होगी।

**पुखराज भटेले**, व्यवस्थापन परिवर्तन के संस्थापक और *बच्चे बचाओ अभियान* के अध्यक्ष, ने इन मुद्दों पर चिंता जताई है। वे राजीव दीक्षित भारत निर्माण ट्रस्ट के जिला प्रमुख और हाईवे संघर्ष समिति भिंड के सदस्य भी हैं। उनका कहना है कि तंत्र में बदलाव की आवश्यकता है और स्वतंत्रता सेनानियों को उनका सही सम्मान मिलना चाहिए।

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