टेसू का खेल: fading परंपरा को जीवित रखने की कोशिश में बच्चे

भोपाल: भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहे टेसू के खेल का आकर्षण अब कम होता जा रहा है, लेकिन कुछ बच्चे आज भी इस परंपरा को जीवित रखने की कोशिश कर रहे हैं। समाजसेवी पुखराज भटेले ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि जब वह आज घर के बाहर आए, तो उन्होंने देखा कि कुछ बच्चे ‘टेसू मेरा यहीं अड़ा, खाने को मांगे दही बड़ा’ गा रहे थे। उन्होंने बच्चों को कुछ पैसे दिए और उनकी सहमति से एक फोटो भी खींची, जिसे उन्होंने इस लेख के साथ साझा किया है।

टेसू: एक भूली-बिसरी परंपरा

भटेले का कहना है कि टेसू का खेल अब लगभग विलुप्त हो गया है। उन्होंने याद दिलाया कि 10-15 साल पहले तक गलियों में बच्चे टेसू और झांझी के गीत गाते हुए घूमते थे। मगर अब यह दृश्य कम ही दिखाई देता है। नई पीढ़ी शायद इन खेलों के केवल किस्से भर सुन पाए, क्योंकि इन परंपरागत खेलों का प्रचलन धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है।

संस्कृति के असली रक्षक

पुखराज भटेले ने कहा, “जब हम भारतीय संस्कृति के संरक्षण की बात करते हैं, तो अक्सर उन बड़े नामों का जिक्र होता है, जो इसे पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन इन प्रयासों में इन बच्चों की भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता, जो स्कूली शिक्षा के साथ-साथ अपनी सांस्कृतिक विरासत को निभाने की कोशिश कर रहे हैं।”

आधुनिक समाज की चुनौती

भटेले ने यह भी कहा कि कई पॉश कॉलोनियों में इन बच्चों को पिछड़ा समझा जाता है। हालांकि, उन्हें गर्व है कि आज भी कुछ बच्चे न केवल पढ़ाई में आगे हैं, बल्कि अपनी संस्कृति को जीवित रखने का प्रयास कर रहे हैं।

संस्कृति संरक्षण में बच्चों की भूमिका

भटेले का मानना है कि ये बच्चे भारतीय परंपराओं और संस्कृति के असली रक्षक हैं। ऐसे बच्चों को प्रोत्साहित करना न केवल हमारे अतीत से जुड़े रहने का तरीका है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी इन प्राचीन खेलों और परंपराओं से परिचित कराने का प्रयास है।

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