व्यवस्था परिवर्तन के संस्थापक पुखराज भटेले ने गोहद के हालात पर चिंता जताई है, जहाँ विकास की गंगा बहाने का दावा करने वाले ‘विकास पुरुष’ और उनके अधिकारी अचानक लापता हो गए हैं। क्या वे विकास की बाढ़ में खुद ही बह गए हैं? इस सवाल का कोई सटीक जवाब नहीं मिल रहा है।
गोहद महल (पुरानी कचहरी) की पांच करोड़ रुपये की लागत वाली दीवारें इतनी कमजोर साबित हुईं कि विकास की हवा लगते ही गिर गईं। लगता है, दीवार ने खुद से पूछा, “इतने बड़े बजट के बावजूद मेरा यह हाल? चलो, मैं भी विकास के साथ ढह जाती हूं!” ऐसा लगता है कि यहां हर निर्माण का यही नियम है: पहले बनाओ, फिर गिराओ, और फिर से बनाओ—क्योंकि खर्च करना ही असली विकास है।
इसके अलावा, ‘नवीन’ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की स्थिति भी चिंता का विषय है। जनता ने विरोध किया था कि यहाँ अस्पताल नहीं बनना चाहिए क्योंकि पानी भर जाएगा, लेकिन विकास पुरुष और उनके अधिकारी ने इसे नजरअंदाज कर दिया। अब, यह अस्पताल पानी में तैर रहा है, जैसे किसी ओलंपिक प्रतियोगिता की तैयारी कर रहा हो। सवाल यह है कि जो अस्पताल खुद ही बचाव कार्य का मोहताज है, वह बीमारों का क्या इलाज करेगा? संभवतः अगले चरण में अस्पताल में बोट क्लिनिक की सुविधा जोड़नी पड़ेगी।
अब गोहद का विकास पुरुष कहाँ है? शायद वह किसी ऊंची पहाड़ी से अपने बहते हुए विकास को देख रहे हैं या किसी अन्य शहर में नए विकास की गंगा बहाने चले गए हैं। गोहद का विकास इतना तेज़ था कि दीवारें, अस्पताल और हमारे विकास पुरुष सब बह गए हैं।