ईरान और हिंदुस्तान: दोस्ती के तकाजों के बीच खामेनेई के भारत पर आरोप के पीछे असल मंशा क्या?

लेखक : अजय बोकिल वरिष्ठ पत्रकार


ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह खामेनेई ने पैगम्बर मोहम्मद के जन्म दिन पर आरोप लगाया कि भारत में मुस्लिम पीड़ित हैं। खामेनेई ने 16 सितंबर को एक्स पर पोस्ट करते हुए भारत को उन देशों में शामिल किया, जहां मुस्लिमों को पीड़ा झेलनी पड़ रही है।

विस्तार

ईरान और भारत के बीच अच्छे रिश्तों के बाद भी ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह खामनेई द्वारा मुसलमानों को प्रताड़ित किए जाने वाले देशों की सूची में भारत का नाम लेना सभी के लिए चौंकाने वाला है, वह भी तब कि जब ईरान पर अमेरिका द्वारा लगाए कठोर आर्थिक प्रतिबंधों की परवाह किए बगैर भारत ने ईरान से व्यापारिक रिश्ते न सिर्फ कायम रखे, बल्कि उन्हें मजबूती दी है।
ज्यादा हैरानी की बात है कि कथित मुस्लिम प्रताड़ना वाले देशों में उन्होंने उस चीन का नाम नहीं लिया है, जहां उइगुर मुसलमानों को नमाज पढ़ने और रोजे रखने तक की इजाजत नहीं है और जिनका बेखौफ चीनीकरण किया जा रहा है।
तो क्या खामेनेई का भारत पर आरोप लगाना भारत के साथ अपने रिश्तों को बिगाड़ने की सोची समझी चाल है, भारत के साथ ईरान की एहसान फरामोशी है या फिर ऐसे बयान देकर खुद को दुनिया में मुसलमानों का एकमात्र मुसलमानों का नेता साबित करने की मंशा है? 
गौरतलब है कि ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह खामेनेई ने पैगम्बर मोहम्मद के जन्म दिन पर आरोप लगाया कि भारत में मुस्लिम पीड़ित हैं। खामेनेई ने 16 सितंबर को एक्स पर पोस्ट करते हुए भारत को उन देशों में शामिल किया, जहां मुस्लिमों को पीड़ा झेलनी पड़ रही है। इस पर भारतीय भारतीय विदेश मंत्रालय ने तत्काल कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि हम खामेनेई के बयान की निंदा करते हैं। यह अस्वीकार्य और पूरी तरह से भ्रामक है।
भारत की प्रतिक्रिया और ईरान
विदेश मंत्रालय ने कहा कि अल्पसंख्यकों के मामले पर कमेंट करने वाले देशों को पहले अपने रिकॉर्ड को देखना चाहिए। मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने बयान को ‘एक्स’ पर शेयर भी किया। इसके पूर्व एक कमेंट में खामेनेई ने लिखा था-दुनिया के मुस्लिमों को भारत, गाजा और म्यांमार में रह रहे मुस्लिमों की तकलीफ से अनजान नहीं रहना चाहिए। अगर आप उनकी पीड़ा को नहीं समझ सकते तो आप मुस्लिम नहीं हैं। खामेनेई ने आरोप लगाया कि इस्लाम के दुश्मन मुस्लमानों में फूट डालते आए हैं।
हालांकि, यह पहली बार नहीं है कि जब खामेनेई भारतीय मुसलमानों के खैरख्वाह बने हैं। खामेनेई ने 2020 के दिल्ली दंगों के बाद कहा था कि भारत में मुस्लिमों का नरसंहार हुआ है। भारत सरकार को कट्टर हिंदुओं के खिलाफ सख्त कदम उठाने चाहिए। सरकार को मुस्लिमों का नरसंहार बंद करना होगा, नहीं तो इस्लामी दुनिया उनका साथ छोड़ देगी।  कश्मीर के मुद्दे पर भी खामेनेई कई बार विवादित बयान देते आए हैं। साल 2017 में खामेनेई ने कश्मीर की तुलना गाजा, यमन और बहरीन से की थी।
5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटने के कुछ दिन बाद खामेनेई ने सोशल मीडिया पर लिखा था- “हम कश्मीर में मुस्लिमों की स्थिति को लेकर चिंतित हैं। खामेनेई 1980 में जम्मू-कश्मीर का दौरा भी कर चुके हैं। कश्मीर मामले में ईरान का रवैया भारत विरोधी ही रहता आया है। इसी साल यानी 2024 में जब ईरान के तत्कालीन राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी अप्रैल में अपने पहले पाकिस्तान दौरे पर गए थे तो दोनों देशों के साझा बयान में कश्मीर का जिक्र था। इस पर भारत ने ईरान के सामने आपत्ति जताई थी।
इन सबके बावजूद भारत ने ईरान के साथ अपने व्यापारिक और कूटनीतिक रिश्तों में खामेनेई के बयानों और ईरान के रवैये को आड़े नहीं आने दिया और ईरान के साथ अपने ऐतिहासिक रिश्तों को ध्यान में रखते हुए आपसी सम्बन्ध बेहतर बनाने पर ही जोर दिया है।
जहां तक भारत में मुसलमानों की कथित प्रताड़ना की बात है तो यह धारणा तथ्यों से विपरीत है। स्थानीय कारणों से होने वाले विवाद अथवा राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को देश के 24 करोड़ मुसलमानों की प्रताड़ना से जोड़ना एक सोची समझी और दुर्भावनापूर्ण रणनीति है।
गाजा में जो इजराइल कर रहा है, या म्यानमार की सैनिक सरकार वहां रोहिंग्या मुसलमानों के साथ जो सलूक कर रही है, उसके कारण अलग हैं। वैसे भी फिलीस्तीन मामले में भारत दो राष्ट्र नीति का समर्थक रहा है। हम चाहते हैं कि फिलीस्तीन और इजराइल दोनो राष्ट्र रहें। इजराइल और ईरान के बीच कट्टर दुश्मनी है।

इसका कारण इजराइल को अमेरिका का अंध समर्थन और ईरान की परमाणु शक्ति बनने की अदम्य इच्छा। इससे भी बड़ा कारण ईरान की इस्लामिक जगत का नया लीडर बनने की तमन्ना है। वैसे भी आज दुनिया के 57 मुस्लिम देशों का नेतृत्व करने और खुद को मुसलमानों का सबसे बड़ा हितैषी सिद्ध करने की चार देशों में होड़ मची है। ये हैं – सउदी अरब, जो खुद को मुसलमानों का स्वाभावित नेता मानता है। दूसरा है, तुर्की जो हाल के वर्षों में मुस्लिम कट्टरपंथ की तरफ झुका है।
खुद ईरान में अल्पसंख्यक सुन्नियों, बहाइयों, पारसियों और कुर्दों के साथ क्या व्यवहार होता है, यह दुनिया जानती है। – फोटो : Social Media
तीसरा है मलेशिया, जिसने सउदी अरब की मर्जी के खिलाफ जाकर मुस्लिम देशो को इकट्ठा करने की कोशिश की थी। अब इसमें ईरान का नाम भी शामिल हो गया है। इन चारो देशों में भी ईरान अकेला शिया बहुल देश है।
पिछले दिनों चीन ने मध्यस्थता कर ईरान और सुन्नी बहुत सउदी अरब के बीच समझौता कराके दुनिया को चौंकाया था। हालांकि, इससे दोनो चिर प्रतिद्वंद्वी देशों के बीच रिश्ते बहुत मधुर हो गए हैं, ऐसा नहीं है। खामेनेई के बयान के पीछे भारत और सउदी अरब के मधुर रिश्ते भी कारण हो सकते हैं।
खामेनेई का भारतीय अल्पसंख्यक मुस्लिमों के प्रति प्रेम सही भी हो सकता था, अगर खुद ईरान में अल्पसंख्यकों के साथ मानवीय व्यवहार होता। मुस्लिम भाईचारे के तमाम दावों के बाद जमीनी हकीकत यह है कि आज दुनिया में सर्वाधिक मारकाट मुस्लिम देशों और कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों के बीच ही हो रही है।
स्टेटा रिसर्च डिपार्टमेंट के ताजा आंकड़ो के मुताबिक वर्ष 2021 से 2022 तक दुनिया भर में आतंकी घटनाओं में कुल 55 हजार 635 लोग मारे गए, जिनमें से अधिकांश मुसलमान ही थे। मरने वाले भी और मारने वाले भी।
हालांकि, इसमें गजा में मारे जाने वाले मुसलमानों की संख्या शामिल नहीं है। जहां हमास-इजराइल युद्ध में 50 हजार से ज्यादा मुसलमान मारे जा चुके हैं। खुद ईरान में अल्पसंख्यक सुन्नियों, बहाइयों, पारसियों और कुर्दों के साथ क्या व्यवहार होता है, यह दुनिया जानती है। बहाइयों को तो वहां कब्रिस्तान भी नसीब नहीं होते। ईरान में हिजाब विरोधी आंदोलन का प्रतीक बनी महसा अमीनी की हत्या वहां की मॉरल पुलिस ने इसलिए भी की थी, क्योंकि वह कुर्द थी।
कैम्ब्रिज से प्रकाशित पत्रिका ‘मनारा’ में हाल में ईरान में अल्पसंख्यक सुन्नियों के हालात पर पेमान असदजादे का आंखें खोलने वाला लेख छपा है। इसमें उन्होंने बताया है कि कैसे ईरान में सुन्नियों के साथ खुला भेदभाव किया जा रहा है। सुन्नी मुसलमान ईरान में करीब 10 फीसदी हैं और देश की सबसे बड़ी अल्पसंख्यक आबादी है।
ये सुन्नी ज्यादातर लारेस्तान में रहते हैं और ईरानी, बलूच, कुर्द, तुर्कमान, अरब आदि में बंटे हुए हैं। केवल ईरान के तीन प्रांतों कुर्दिस्तान,  सिस्तान और बलूचिस्तान में वो बहुसंख्यक हैं। ये वो इलाके हैं, जो विकास की दौड़ में बहुत पिछड़े हैं या जिनकी ईरान सरकार द्वारा जानबूझकर उपेक्षा की जाती रही है। यहां तक देश में शिया और सुन्नियों के बीच साक्षरता दर में बहुत फर्क है।
सुन्नी इलाकों में शुद्ध पेयजल तक आसानी से उपलब्ध नहीं है। जहां तक राजनीतिक प्रतिनिधित्व की बात है कि ईरान सरकार में 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद सुन्नी मुसलमानों का प्रतिनिधित्व नहीं के बराबर है।  ईरान में शियाओं का एक उप सम्प्रदाय बारह इमाम को मानना ही देश का आधिकारिक धर्म है।
हालांकि, सुन्नियों को उनका धर्म मानने की इजाजत है। सुन्नियों के दबाव के चलते हाल के कुछ वर्षों में उनका  ईरान सरकार में प्रतिनिधित्व बढ़ाने की कोशिश जरूर की गई है। लेकिन सुन्नी से भेदभाव की भावना अब सुन्नी आतंकी संगठनों की हिंसक कार्रवाइयों में तब्दील होती जा रही है। वहां जैश-उल-अदल तथा जैश-उल-अंसार तथा अल-फुरकान जैसी सुन्नी आतंकवादी सगंठन दक्षिणी ईरान में सक्रिय हैं।
पिछले दिनो ईरान ने पाकिस्तान के बलूचिस्तान में जो एयर स्ट्राइक की थी, वह सुन्नी बलूची संगठनों के खिलाफ ही थी। यही हाल सुन्नी कुर्दों का भी है। ईरान सरकार उन्हें सख्ती से कुचलती रही है। 
इधर भारत में मोदी सरकार पर आरोप है कि उसके राज में देश में मुसलमानों को हाशिए पर डालने की कोशिश की जा रही है। इसमे आंशिक सच्चाई हो सकती है, लेकिन इसकी तुलना गजा, म्यानमार जैसे देशों से करना यही साबित करता है कि ईरानी सुप्रीम लीडर के लिए मुसलमान होने से ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ नहीं है। गनीमत है कि अयातुल्लाह खामेनेई और ईरान के राष्ट्राध्यक्षों द्वारा यदा कदा दिए जाने वाले भारत विरोधी और मुस्लिम समर्थक बयानों के बावजूद दोनो देशों के कूटनीतिक व व्यापारिक रिश्तों पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ा है।
ईरान पर उसके परमाणु कार्यक्रम के कारण कड़े अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध हैं। इसके बाद भी भारतीय नेता ईरान का दौरा करते रहे हैं। हाल में दोनो देशों के बीच हुए एक अहम समझौते के तहत ईरान के चाबहार स्थित शाहित बहिश्ती बंदरगाह का संचालन अगले 10 साल के लिए भारत ही करेगा। जिसका लाभ अफगानिस्तान को भी होगा और जिसे पाकिस्तान के ग्वादर में चीन द्वारा विकसित किए जा रहे बंदरगाह का जवाब माना जा रहा है।
भारत ईरान से मुख्य रूप से बड़े पैमाने पर कच्चे तेल का आयात करता है। जबकि ईरान भारत से बासमती चावल व अन्य वस्तुएं आयात करता है। बहरहाल खामेनेई के खुले भारत विरोध के बाद ईरान के साथ हमारे रिश्ते क्या दिशा लेते हैं, यह देखने की बात है।
( अमर उजाला डाॅट काॅम पर दि.18 सितंबर 2024 को प्रकाशित)

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