भोपाल । मध्य प्रदेश में भाजपा के जिला अध्यक्षों की नियुक्ति पर असमंजस बरकरार है। पार्टी में गुटबाजी इतनी हावी हो चुकी है कि शिवराज सिंह चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया, कैलाश विजयवर्गीय और प्रहलाद पटेल के प्रभाव वाले जिलों में जिला अध्यक्ष का चयन आपसी खींचतान की भेंट चढ़ गया है। यही कारण है कि भाजपा अब तक जिला अध्यक्षों की सूची जारी करने में असमर्थ रही है।
गुटबाजी के कारण फंसा मामला
सूत्रों के अनुसार, भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के बीच मतभेद के चलते अगले कुछ दिनों में भी इस मामले के सुलझने की संभावना कम ही नजर आ रही है। प्रदेश कार्यालय में कई दौर की बैठकें और चर्चा के बावजूद नेताओं के बीच सहमति नहीं बन पाई। चुनाव प्रभारियों ने जिन नामों की सिफारिश की है, वे वरिष्ठ नेताओं के सुझाए नामों से अलग हैं।
हर वरिष्ठ नेता अपने इलाके में अपनी पसंद के व्यक्ति को जिला अध्यक्ष बनाने पर अड़ा हुआ है। इससे स्थिति और जटिल हो गई है। संगठन की प्राथमिकता को दरकिनार कर नेता अपनी-अपनी राजनीति साधने में जुटे हुए हैं।
दिल्ली तक पहुंचा मामला
यह मुद्दा दिल्ली नेतृत्व तक पहुंच चुका है। पिछले चार दिनों से प्रदेश भाजपा के नेता दिल्ली से निर्देशों का इंतजार कर रहे हैं। हालांकि, दिल्ली के नेताओं पर भी एमपी भाजपा के नेताओं का दबाव साफ नजर आ रहा है। भाजपा नेतृत्व वरिष्ठ नेताओं को नाराज नहीं करना चाहता, लेकिन संगठन के कार्यकर्ताओं की मेहनत को भी नज़रअंदाज नहीं करना चाहता।
पार्टी में गुटबाजी से बढ़ी चुनौती
जिस कांग्रेस पर गुटबाजी का आरोप लगाती रही भाजपा, वह खुद इस समय अंदरूनी गुटों में बंटी हुई नजर आ रही है। विधानसभा चुनावों के दौरान दिल्ली से भेजे गए पांच नेता अब मोहन सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर हैं, लेकिन वे अपनी अलग राजनीति चला रहे हैं। इससे पार्टी में समन्वय स्थापित करने की कोशिशें लगातार विफल हो रही हैं।
भाजपा की चिंता
जिला अध्यक्षों की सूची जारी न होने से पार्टी की छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, और ऐसे में संगठन को मजबूत करने की बजाय अंदरूनी गुटबाजी भाजपा के लिए चुनौती बन गई है। अगर जल्द ही इस समस्या का समाधान नहीं हुआ तो पार्टी को आगामी चुनावों में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।