State

मध्यप्रदेश में सूचना के अधिकार कानून 2005 का पालन अधर में, आवेदनकर्ताओं को हो रही परेशानियां

भोपाल: सूचना के अधिकार (RTI) कानून 2005 को लागू हुए 18-19 वर्ष हो चुके हैं, लेकिन मध्यप्रदेश में अब भी इस कानून का पूरी तरह से पालन नहीं हो रहा है। शासकीय कार्यालयों में लोक सूचना अधिकारी और प्रथम अपीलीय अधिकारी के नाम व पद की जानकारी देने वाले बोर्ड तक नहीं लगे हैं। इससे आमजन और RTI आवेदनकर्ताओं को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

मुख्य समस्याएं

1. शुल्क जमा करने की जटिलताएं:
RTI के तहत जानकारी प्राप्त करने के लिए एमपीटीसी (MPTC) के माध्यम से शुल्क जमा करना अनिवार्य है। हालांकि, प्रदेश के 80% शासकीय कार्यालय एमपीटीसी शुल्क स्वीकार करने से इनकार कर देते हैं। पोस्टल ऑर्डर और नॉन-जुडिशियल स्टांप की अनुपलब्धता और उनकी अधिक कीमतें भी समस्या को बढ़ा रही हैं। एमपी ऑनलाइन के माध्यम से शुल्क जमा करने पर अतिरिक्त चार्ज लिया जाता है, जो आवेदकों पर वित्तीय बोझ डालता है।
2. जानकारी समय पर न देना:
अधिकांश मामलों में लोक सूचना अधिकारी जानबूझकर समयसीमा में जानकारी प्रदान नहीं करते। कई बार जानकारी देने से इनकार करने के लिए ऐसे कारण बताए जाते हैं, जो आरटीआई कानून के तहत वैध नहीं हैं।
3. राज्य सूचना आयोग के आदेशों का गलत उपयोग:
लोक सूचना अधिकारी अक्सर राज्य सूचना आयोग के आदेशों का गलत संदर्भ देते हुए धारा 8 का उल्लेख कर जानकारी देने से बचते हैं। इससे आवेदकों के अधिकारों का सीधा उल्लंघन होता है।
क्या होनी चाहिए कार्रवाई?
स्पष्ट दिशा-निर्देश: सभी शासकीय कार्यालयों में RTI शुल्क जमा करने की प्रक्रिया को सरल और एकरूप बनाया जाए। ऑनलाइन शुल्क में सुधार: एमपी ऑनलाइन और अन्य माध्यमों से अतिरिक्त शुल्क को समाप्त किया जाए। समयबद्ध जानकारी का प्रावधान: RTI आवेदनों पर तय समयसीमा के भीतर जानकारी उपलब्ध कराने के निर्देश दिए जाएं। अधिकारियों की जवाबदेही: लोक सूचना अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर कड़ी निगरानी रखी जाए और लापरवाही पर सख्त कार्रवाई की जाए।

Related Articles