जल जीवन मिशन: बजट की कमी और अफसरशाही के जाल में फंसी प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना

**भोपाल**: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी *जल जीवन मिशन* योजना, जिसका उद्देश्य मार्च 2024 तक हर घर में शुद्ध पेयजल पहुंचाना था, अफसरशाही और बजट की कमी के कारण अधर में लटक गई है। इस योजना की सुस्त रफ्तार और अधूरे कार्यों के कारण अब इसकी समयसीमा पर पूरा होना मुश्किल दिख रहा है। महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और झारखंड जैसे राज्यों में यह योजना पूरी तरह रुक गई है। बजट न मिलने के कारण ठेकेदार काम छोड़कर जा चुके हैं और इससे जुड़े कर्मियों का रोजगार भी खतरे में आ गया है।

### **बजट की कमी और रुका हुआ भुगतान:**

जल जीवन मिशन योजना 15 अगस्त 2019 को शुरू की गई थी, जिसमें देशभर के ग्रामीण क्षेत्रों में नल के जरिए पीने का शुद्ध पानी पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया था। शुरुआत में 3.24 करोड़ परिवारों तक ही नल जल की सुविधा थी, लेकिन पिछले पांच सालों में 15.15 करोड़ परिवारों तक यह सुविधा पहुंचाई गई। हालांकि, अभी भी 4.18 करोड़ परिवारों तक पानी पहुंचना बाकी है, जिसमें राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड जैसे जल संकटग्रस्त इलाके शामिल हैं। 

योजना की शुरुआत में बजट 3.60 लाख करोड़ रुपये था, लेकिन अब यह बढ़कर 8.33 लाख करोड़ रुपये हो गया है। इसमें केंद्र और राज्यों की हिस्सेदारी क्रमशः 4.33 लाख करोड़ और 4.00 लाख करोड़ रुपये है। केंद्र से फंड की कमी और पिछले कामों का भुगतान न होने से योजना की गति धीमी हो गई है। मध्यप्रदेश में इस समय 1500 करोड़ रुपये का भुगतान अटका हुआ है, जिससे ठेकेदारों और सप्लायर्स को सामग्री और कामगारों की आपूर्ति में समस्या आ रही है।

### **अफसरशाही के कारण रुका फंड:**

जानकारों का मानना है कि जल जीवन मिशन पर अफसरशाही का शिकंजा है, जिसकी वजह से फंड जारी नहीं हो रहा। केंद्रीय अधिकारियों ने कार्य की गुणवत्ता की जांच के लिए बजट को रोक दिया है। आठ मापदंडों के आधार पर परियोजना की समीक्षा की जा रही है, जिसमें पानी की उपलब्धता, नल में पानी का दबाव, खर्च का आकलन और प्रति नल खर्च जैसे बिंदु शामिल हैं। दूसरी ओर, राज्य सरकारों का तर्क है कि जांच के साथ-साथ काम भी जारी रहना चाहिए, क्योंकि एक बार काम रुकने पर इसे दोबारा शुरू करने में लागत और अधिक बढ़ सकती है।

### **कोरोना महामारी और पाइप की कमी से आई दिक्कतें:**

कोरोना महामारी के दौरान दो साल तक योजना पर काम रुक गया, जिससे परियोजना की समयसीमा में और देरी हो गई। इसके अलावा, डक्टाइल आयरन पाइप, जो इस प्रोजेक्ट में मुख्य रूप से इस्तेमाल होते हैं, की कमी से भी सप्लाई प्रभावित हुई। सीमित निर्माताओं के कारण अचानक बढ़ी मांग को पूरा करना मुश्किल हो गया, जिससे भी प्रोजेक्ट की प्रगति बाधित हुई।

### **राज्यों में जल जीवन मिशन की स्थिति:**

देश के 23 राज्यों में जल जीवन मिशन का काम अधर में लटका हुआ है। पश्चिम बंगाल और राजस्थान जैसे राज्यों में केवल 52-53 प्रतिशत घरों में ही नल जल की सुविधा मिल पाई है, जबकि मध्यप्रदेश में 65.04 प्रतिशत लक्ष्य ही पूरा हुआ है।

### **मध्यप्रदेश में फंसी 1500 करोड़ रुपये की राशि:**

इस वित्तीय वर्ष में केंद्र ने मध्यप्रदेश को 4,044 करोड़ रुपये और राज्य ने 7,671.60 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया है। हालांकि, फिलहाल 1500 करोड़ रुपये का भुगतान लंबित है। वर्ष 2024-25 के लिए मध्यप्रदेश को जल जीवन मिशन के तहत कम से कम 17,000 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी। प्रदेश के लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री संपतिया उइके ने बताया कि केंद्र से करीब 1500 करोड़ रुपये की राशि लंबित है और इसके लिए मांग पत्र भी भेजा गया है।

जल जीवन मिशन जैसी महत्वाकांक्षी योजना, जो देशभर में ग्रामीण परिवारों को स्वच्छ पेयजल की सुविधा देने का लक्ष्य रखती है, बजट की कमी और अफसरशाही के जाल में फंसकर अपने लक्ष्य से भटक गई है। अगर जल्द ही फंड आवंटन और प्रशासनिक अड़चनों को सुलझाया नहीं गया, तो यह योजना अपने निर्धारित समय पर पूरी होना मुश्किल हो जाएगा।

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