मऊगंज घटना और न्याय की कसौटी: क्या सभी के लिए समान कानून?

मध्यप्रदेश में कानून व्यवस्था और न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता पर एक बार फिर सवाल उठने लगे हैं। हाल ही में मऊगंज में हुई एक जघन्य हत्या ने व्यवस्था की त्वरित कार्रवाई और निष्पक्षता को लेकर बहस छेड़ दी है।

क्या न्याय सभी के लिए समान है?
अगर अपराधी विशेष समुदाय से हो, तो क्या प्रशासन की सक्रियता कम हो जाती है?
दूसरे मामलों में बुलडोजर कार्रवाई की मिसालें देखी गई हैं, तो इस बार क्यों नहीं?
क्या पीड़ित परिवार को न्याय मिलने में भेदभाव किया जाएगा?
क्या मुख्यमंत्री मोहन यादव इस मामले में त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित करेंगे?

न्याय में निष्पक्षता होनी चाहिए

सरकार और प्रशासन को यह दिखाना होगा कि कानून की नजर में हर अपराधी सिर्फ अपराधी होता है, उसकी जाति या समुदाय से कोई संबंध नहीं। यदि मऊगंज की इस घटना में भी वही तत्परता नहीं दिखाई जाती, जो अन्य मामलों में देखी गई है, तो यह प्रणाली की निष्पक्षता पर गंभीर प्रश्न खड़ा करेगा।

जनता को तय करना होगा

क्या न्याय हर वर्ग के लिए समान रूप से लागू हो रहा है?
क्या प्रशासन और सरकार निष्पक्ष कार्रवाई करेंगे?
या फिर कुछ मामलों में विशेष सावधानी और कुछ में विशेष तेजी दिखाई जाती रहेगी?

मऊगंज की घटना ने न्याय प्रणाली की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर एक नई बहस छेड़ दी है। अब देखना यह होगा कि सरकार और प्रशासन इस पर क्या रुख अपनाते हैं।

जब अपराधी ब्राह्मण हो तो बुलडोजर, जब पीड़ित ब्राह्मण हो तो सन्नाटा
अगर किसी ब्राह्मण ने किसी दलित या आदिवासी के साथ अपराध कर दिया होता, तो आज मीडिया इसे “जातीय हिंसा” का नाम देकर खूब TRP कमा रहा होता। मुख्यमंत्री मोहन यादव से लेकर प्रशासन के आला अधिकारी तक पीड़ित परिवार के घर पहुँच चुके होते। FIR, गिरफ्तारी, मुआवजा—सब कुछ बिजली की गति से होता। और बुलडोजर? वह तो रातोंरात दोषी के घर पर गरजने लगता।

लेकिन जब पीड़ित पक्ष ब्राह्मण हो और अपराधी कोई “संरक्षित वर्ग” से आते हों, तो पूरी व्यवस्था मौन धारण कर लेती है। ऐसे मामलों में न प्रशासन तत्परता दिखाता है, न सरकार।

क्या मुख्यमंत्री मोहन यादव न्याय सुनिश्चित करेंगे?

अब सवाल उठता है—क्या मुख्यमंत्री मोहन यादव इस जघन्य हत्या के पीड़ित परिवार से मिलने जाएंगे? क्या अपराधियों पर वही सख्त कार्रवाई होगी, जो दूसरे मामलों में देखने को मिलती है? क्या बुलडोजर चलेगा? या फिर “वर्ग विशेष” की छवि को बचाने के लिए इस मामले को दबा दिया #मध्यप्रदेश

अगर सरकार वास्तव में निष्पक्ष है, तो उसे दिखाना होगा कि कानून की नजर में अपराधी सिर्फ अपराधी होता है, उसकी जाति या समुदाय से कोई फर्क नहीं पड़ता। अन्यथा यह साफ़ हो जाएगा कि न्याय अब एक वर्ग के लिए अलग और दूसरे वर्ग के लिए अलग हो चुका है।

मऊगंज की इस घटना ने एक बार फिर हमारे तथाकथित “निष्पक्ष” सिस्टम की पोल खोल दी है। जनता को अब यह तय करना होगा कि वह कब तक इस अन्यायपूर्ण दोहरे मापदंड को स्वीकार करती रहेगी।

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