भोपाल। सुप्रीम कोर्ट ने संविदा कर्मचारियों के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए उनके नियमितीकरण का मार्ग प्रशस्त किया है। यह फैसला केंद्रीय जल आयोग में कार्यरत संविदा कर्मचारियों के लिए बड़ी राहत लेकर आया है।
संविदा कर्मचारियों का संघर्ष
1993, 1998 और 2004 में केंद्रीय जल आयोग में अंशकालीन संविदा के तहत नियुक्त चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों ने वर्षों तक नियमितीकरण की मांग की। ये कर्मचारी नियमीत कर्मचारियों की तरह पूरे समय काम कर रहे थे, लेकिन उन्हें स्थायी कर्मचारियों के समान सुविधाएं नहीं दी जा रही थीं।
2015 में, कर्मचारियों ने नियमितीकरण के लिए केंद्रीय अधिकरण (ट्रिब्यूनल) में याचिका दायर की, लेकिन ट्रिब्यूनल ने उनकी याचिका खारिज कर दी। इसके बाद विभाग ने संविदा कर्मचारियों की सेवा समाप्त करते हुए उन्हें आउटसोर्स पर रख लिया।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
कर्मचारियों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जहां उन्होंने सेवा समाप्ति के आदेश को निरस्त करने और नियमितीकरण की मांग की। सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक निर्णय में कहा कि:
संविदा कर्मचारियों ने 10 साल से अधिक समय तक नियमित कर्मचारियों की तरह काम किया।
सरकारें “अस्थाई” और “संविदा” शब्द का उपयोग कर्मचारियों के अधिकारों को कुचलने और दीर्घकालिक दायित्वों से बचने के लिए करती हैं।
यह हमारे संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि भारत अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का सदस्य है, जिसके तहत श्रमिकों के हितों की रक्षा करना और शोषण रोकना अनिवार्य है।
मध्य प्रदेश में भी लागू करने की मांग
मध्य प्रदेश संविदा कर्मचारी अधिकारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष रमेश राठौर ने इस फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आधार पर राज्य सरकार को भी संविदा कर्मचारियों को नियमित करना चाहिए। महासंघ ने यह फैसला मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव (सामान्य प्रशासन), और वित्त विभाग को ज्ञापन के रूप में प्रस्तुत करने की योजना बनाई है।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला संविदा कर्मचारियों के शोषण पर करारा प्रहार है और सरकारी तंत्र में श्रमिकों के अधिकारों को सुदृढ़ करने का एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे न केवल संविदा कर्मचारियों के हित सुरक्षित होंगे, बल्कि उनके भविष्य के लिए भी नई उम्मीदें जागेंगी।