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तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन: प्राचीन प्राकृत भाषा एवं शास्त्रों के संरक्षण पर जोर

भोपाल: नंदीश्वर जिनालय परिसर में दिगंबर जैन खरौआ महासभा महासमिति के विशेष सहयोग से आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का सफलतापूर्वक समापन हुआ। यह संगोष्ठी आचार्य विनम्र सागर महाराज के संघ सानिध्य में संपन्न हुई, जिसमें देशभर के विभिन्न शहरों से आए प्रमुख विद्वानों ने भारतीय संस्कृति, संस्कारों, प्राचीन प्राकृत भाषा, और शास्त्रों के संरक्षण पर गहन चर्चा की और अपने बहुमूल्य सुझाव दिए।

विद्वानों का सम्मान और आशीर्वचन

संगोष्ठी के प्रवक्ता अंशुल जैन ने बताया कि कार्यक्रम का मंगलाचरण श्रीमती सुधा मलैया द्वारा किया गया। इस अवसर पर नंदीश्वर जिनालय के अध्यक्ष एडवोकेट विजय चौधरी, प्रमोद चौधरी, खरौआ महासमिति के अध्यक्ष विजय जैन, खरौआ महासभा के अध्यक्ष अशोक जैन, दिनेश जैन, अपूर्व पवैया और देवेंद्र जैन ने सभी विद्वानों का सम्मान किया।

आचार्य विनम्र सागर महाराज, मुनि श्री विज्ञ सागर महाराज, और आर्यिका विमल श्री माताजी ने आशीर्वचन देते हुए कहा, “मनुष्य का जीवन नैतिकता, संयम और आचरण से ही उन्नति करता है। मन की गति और गणित की व्याख्या भी शास्त्रों से प्राप्त होती है।”

मुख्य अतिथि और प्रमुख विद्वानों के विचार

मुख्य अतिथि आईएएस सुरेश जैन और एसडीएम आदित्य जैन ने भी अपने विचार रखते हुए कहा कि प्राचीन प्राकृत भाषा और शास्त्रों का संरक्षण केवल सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा नहीं है, बल्कि भावी पीढ़ी को सही दिशा देने का माध्यम भी है।

संगोष्ठी का संचालन और विद्वानों की उपस्थिति

इस तीन दिवसीय संगोष्ठी का सफल संचालन संयोजिका डॉ. नीलम जैन सराफ, ललितपुर द्वारा किया गया। संगोष्ठी में आमंत्रित प्रमुख विद्वानों में वाराणसी के प्रोफेसर अशोक जैन, राष्ट्रपति सम्मान प्राप्त प्रोफेसर सुदर्शन लाल जैन, प्रमुख प्रतिष्ठाचार्य विमल सोरया, बुरहानपुर से डॉ. सुरेंद्र जैन, जयपुर के प्राचार्य डॉ. अनिल जैन, छतरपुर के ब्रह्मचारी भैया विनोद, सागर के हरिश्चंद्र शास्त्री और इंदौर के डॉ. पंकज जैन शास्त्री शामिल थे।

शास्त्र अनावरण

संगोष्ठी के समापन पर आचार्य विनम्र सागर महाराज द्वारा लिखित एक नए शास्त्र का अनावरण भी किया गया, जिससे इस आयोजन का महत्व और बढ़ गया।

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