अजय बोकिल, वरिष्ठ पत्रकार भोपाल
भारतीय महिला पहलवान विनेश फोगाट ने वजन ज्यादा होने से कुश्ती के फाइनल में डिसक्वालिफाई होने के बाद गहरी निराशा में कुश्ती से ही संन्यास लेने की घोषणा कर दी है। उनके इस फैसले पर व्यापक सहानुभूति भी उमड़ रही है। कहा जा रहा है कि सिस्टम ने उन्हे हरा दिया। विनेश के साथ जो हुआ, उससे पूरा देश दुखी है। क्योंकि महज सौ ग्राम वजन एक पूरे अोलिंपिक मेडल पर भारी साबित हुआ। लेकिन बेहतर होता कि कुश्ती से संन्यास लेने की जगह वो अगले अोलिंपिक में मेडल जीतने का संकल्प जतातीं। क्योंकि विनेश को अोलिंपिक के सख्त नियमों का पता पहले से था। वैसे भी वो अपनी नियमित कैटेगरी 53 किलो से कम 50 किलोग्राम वाली कैटेगरी में खेल रही थीं। अपना वजन सामान्य से कम बनाए रखना आसान नहीं है। उन्होंने अपनी वजन केटेगरी क्यों बदलीं, स्वेच्छा से बदली या उन्हें बदलने के लिए कहा गया, वजन की सख्त सीमा जानते हुए भी वो इसको लेकर गफलत में क्यों रहीं, अगर विनेश का वजन थोड़ा भी बढ़ा था तो वो फाइनल तक कैसे आन पहुंचीं, इन तमाम सवालों के जवाब अभी मिलने हैं। दूसरी तरफ भारत में विनेश के अयोग्य घोषित होने पर भी सियासी जंग हो रही है। हमारे यहां किसी भी बात पर राजनीति हो सकती है और सट्टा लग सकता है।
विनेश ने बुधवार को कुश्ती के अपने फाइनल मुकाबले में फिट रहने के लिए सारी रात वर्क आउट किया। वजन घटाने की हर संभव कोशिश की। नतीजा यह हुआ कि वो खुद डीहाईड्रेशन का शिकार हो गईं। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। ऐसी हालत में अगर वो फाइनल खेलना भी चाहतीं तो शायद ही जीततीं। वजन का अड़ंगा विनेश के लिए कोई नई बात नहीं थी। पिछले अोलिपिंक में भी वो इसी कारण डिसक्वालिफाई हुई थीं। लेकिन वो शुरूआती दौर में ही बाहर हो गई थीं। इसलिए उस पर किसी किस्म का कोई बवाल नहीं मचा था। दूसरा कारण पेरिस अोलिपिंक के पहले भाजपा नेता व भारतीय कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष ब्रजभूषण शरण सिंह द्वारा कथित यौन प्रता़ड़ना के खिलाफ जो पहलवान जंतर मंतर पर धरने पर बैठे थे, उनमें विनेश फोगाट की सक्रिय भूमिका थी। उन्हें जबरन घसीटा भी गया था। सत्ता पक्ष के लोगों ने उन्हें ट्रोल भी किया। इस पूरे मामले में केन्द्र सरकार ब्रजभूषण के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने से बचती रही, क्योंकि उसे यूपी में राजपूत वोटों की िचंता थी। हालांकि लोकसभा चुनाव के जो नतीजे आए, उसे देखकर लगा कि ब्रजभूषण को बचाने का कोई खास लाभ नहीं मिला। उल्टे हरियाणा में और नुकसान हो गया, क्योंकि विनेश हरियाणा से हैं और जाट समुदाय से हैं।
लेकिन विनेश का जाट समुदाय से होना महत्वपूर्ण नहीं हैं। वो काबिल और जुझारू पहलवान हैं। शायद वो अपनी मूल केटेगरी में ही कुश्ती लड़तीं तो भी सफल हो सकती थीं। उसके लिए उन्हें वजन को मुट्ठी में रखने की जरूरत शायद नहीं पड़ती। वैसे भी वजन घटाना कोई ट्यूब में से हवा निकालना नहीं है। खासकर अोलिंिपक मैच खेलने के लिहाज से। कहा यह भी जा रहा है कि वो ट्रायल मैच खेले बिना ही अोलिपिंक चली गई। अगर ऐसा है तो भी उन्होंने तीन मैचो में जबर्दस्त प्रदर्शन कर भारतवािसयों की स्वर्ण पदक की उम्मीदों को नए पंख दे दिए थे।
और क्यों न हो, अोलिंिपक के इतिहास में कुश्ती के खेल में भारत को पहली बार गोल्ड मेडल जीतने की सुनहरी आस बंधी थी। जब आशा आसमान पर हो तो निराशा जमीन पर उल्का की तरह गिरती है।
वही हुआ भी। यह पहली बार था कि जब एक खिलाड़ी के साथ हुए ‘अन्याय’ को लेकर समूचा देश उद्वेलित हुआ। खेल की चिंता पूरे राष्ट्र की चिंता बन गई। यह अपने आप में सकारात्मक लक्षण है, भले ही उसके भीतर सियासी दांव पेंच क्यों न छिपे हों। एक असली खिलाड़ी के साथ नाइंसाफी पर सियासत के खिलाडि़यों ने संसद हिला दी। सरकार को जवाब देना पड़ा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि सारा देश विनेश के साथ है। हालांकि कई सवालों के जवाब अभी बाकी हैं।
उधर पेरिस में अस्पताल में ठीक होने के बाद भी विनेश भावनात्मक रूप से चित हो गई थीं। देशी सिस्टम को टूट गई थी। उन्होंने गुरूवार को तड़के एक्स पर पोस्ट किया “मां कुश्ती मेरे से जीत गई, मैं हार गई। माफ करना आपका सपना, मेरी हिम्मत सब टूट चुके। इससे ज्यादा ताकत नहीं रही अब। अलविदा कुश्ती 2001-2024, आप सबकी हमेशा ऋणी रहूंगी, माफी।” अच्छा होता कि विनेश संन्यास की जगह ये पोस्ट करती कि इस ‘नाइंसाफी’ का जवाब वो अगले अोलिंिपक में सोना जीत कर देगी तो शायद वह और ज्यादा युवा खिलाडि़यों की प्रेरणा बनती। वो मेडल लाती तो देश बार बार उनका ऋणी रहता। उम्मीद के अखाड़े में नाउम्मीदी को धूल चटाने का वह धोबी पछाड़ दांव होता।