
खंडवा । शहरीकरण और बदलते पर्यावरण के कारण गौरैया जैसी नन्हीं चिड़िया अब दुर्लभ होती जा रही है, लेकिन खंडवा के काले परिवार ने गौरैयाओं के लिए सुरक्षित बसेरा बनाकर एक अनोखी मिसाल पेश की है। अपने घर की छत को “मन गार्डन” नाम देकर इस परिवार ने 10 साल की मेहनत से इसे पक्षियों के लिए स्वर्ग बना दिया है, जहां आज 30 से अधिक गौरैयाएं आश्रय ले रही हैं।
गौरैयाओं के लिए सुरक्षित घर बनाने की प्रेरणा
मुकेश काले और उनके परिवार ने अपनी छत पर एक अनोखा गार्डन तैयार किया, जहां लकड़ी के छोटे-छोटे घोंसले, पानी के सकोरे और अनाज के दाने रखे गए।
इस प्रयास की शुरुआत गौरैया संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हुई।
गर्मी में पक्षियों के लिए छायादार स्थान और ठंडे पानी की व्यवस्था की गई है, जिससे यह स्थान सिर्फ गौरैयाओं के लिए नहीं, बल्कि अन्य पक्षियों के लिए भी स्वर्ग बन गया है।
हर सुबह की शुरुआत गौरैयाओं के साथ
काले परिवार के सदस्य – मुकेश काले, उनकी पत्नी पूर्णिमा, बेटे आदित्य और अथर्व – गौरैयाओं की देखभाल में पूरी तरह समर्पित हैं।
हर सुबह पक्षियों की चहचहाहट से पूरा घर गूंज उठता है और शाम होते ही वे वापस इसी छत पर लौट आते हैं।
परिवार के अनुसार, जब से गौरैयाएं उनके घर आईं, तब से खुशियां भी लौट आईं।
“मन गार्डन” – गौरैयाओं के लिए स्वर्ग
छत पर विशेष लोहे के स्टैंड बनाए गए हैं, जिसमें लकड़ी के छोटे घर लगे हैं।
हर दिन चना, चावल, ज्वार और अन्य अनाज रखा जाता है ताकि कोई भी भूखा पक्षी वहां भोजन कर सके।
गौरैया संरक्षण के इस प्रयास ने अन्य लोगों को भी प्रेरित किया है, और अब उनके दोस्त और पड़ोसी भी अपने घरों की छतों पर ऐसे ही छोटे गार्डन बनाने की योजना बना रहे हैं।
पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बड़ा कदम
इस परिवार का प्रयास न सिर्फ गौरैयाओं को वापस लाने में सफल रहा, बल्कि यह भविष्य के लिए भी एक महत्वपूर्ण पहल साबित हुआ।
“मन गार्डन” में परिवार के शुभ कार्य और समारोह भी आयोजित होते हैं, जहां हर उत्सव की शुरुआत गौरैयाओं और अन्य पक्षियों को दाना-पानी देने से होती है।
काले परिवार का कहना है कि यह उनकी नई परंपरा बन गई है, जो पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनके प्रेम को दर्शाती है।
विश्व गौरैया दिवस पर संकल्प
आज विश्व गौरैया दिवस पर हमें भी यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने घरों में गौरैयाओं और अन्य पक्षियों के लिए सुरक्षित स्थान बनाएं। बस थोड़ी सी कोशिश से हम इन नन्हीं चिड़ियों को अपने आंगन में वापस बुला सकते हैं।