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मध्य प्रदेश सरकार के कई विभाग कागजों तक सीमित, 90 करोड़ का वार्षिक खर्च बेकार

भोपाल। मध्य प्रदेश सरकार के छह प्रमुख विभाग और इनके अंतर्गत 18 से अधिक सरकारी उपक्रमों पर सवाल खड़े हो रहे हैं। इन विभागों की उपयोगिता और कार्य क्षमता पर लगातार विफलता के आरोप लग रहे हैं।

राजनीतिक नियुक्तियों और वेतन तक सीमित

ये विभाग अपनी असली जिम्मेदारियों को निभाने में नाकाम साबित हो रहे हैं और ज्यादातर केवल राजनीतिक नियुक्तियों और कर्मचारियों के वेतन तक ही सीमित हैं। जनता के हितों के लिए इनका योगदान लगभग शून्य बताया जा रहा है।

प्रमुख विभागों पर नजर:

1. आनंद विभाग:
खुशहाली और मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने के लिए स्थापित यह विभाग अपनी प्रासंगिकता साबित नहीं कर पाया।


2. प्रवासी भारतीय विभाग:
विदेशों में बसे भारतीयों के साथ जुड़ाव और निवेश लाने का दावा करने वाला यह विभाग भी निष्क्रिय नजर आता है।


3. अर्ध घुमक्कड़ विमुक्त जाति विभाग:
इस विभाग का मुख्य उद्देश्य वंचित वर्गों के लिए काम करना था, लेकिन अब तक ठोस परिणाम नहीं दिखे।



90 करोड़ रुपए का सालाना खर्च

सरकार हर साल इन विभागों पर 90 करोड़ रुपए खर्च कर रही है, लेकिन ये राशि न तो योजनाओं में दिखाई देती है और न ही जनता के लाभ में।

क्या कहना है विशेषज्ञों का?

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इन विभागों का उद्देश्य केवल पद और अवसर देना बनकर रह गया है। अगर इनकी प्रासंगिकता नहीं है, तो इन्हें बंद कर दिया जाना चाहिए या उनके कार्यक्षेत्र को पुनः परिभाषित करना चाहिए।

जनता का सवाल

आम जनता का सवाल है कि जब इन विभागों से कोई ठोस लाभ नहीं हो रहा, तो जनता के करों की इतनी बड़ी राशि इन पर क्यों खर्च की जा रही है?

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