जिम्बाब्वे में मृत्युदंड समाप्त: जल्लादों की भारी कमी और मानवाधिकारों की जीत

हरारे। जल्लादों की भारी कमी के चलते जिम्बाब्वे सरकार ने मृत्युदंड को समाप्त करने का ऐतिहासिक फैसला लिया है। देश में 60 कैदी ऐसे हैं जिन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी, लेकिन अब उन्हें यह सजा नहीं दी जाएगी। मंगलवार को राष्ट्रपति एमर्सन मनांगाग्वा ने संसद में इस कानून को मंजूरी दी।

स्वतंत्रता संग्राम से मृत्युदंड तक का सफर

राष्ट्रपति मनांगाग्वा खुद 1960 के दशक में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान मौत की सजा पा चुके हैं। श्वेत अल्पसंख्यक शासन के खिलाफ संघर्ष के दौरान एक ट्रेन को नुकसान पहुंचाने के आरोप में उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी, जो बाद में 10 साल की जेल में बदल दी गई। 2017 से राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने मृत्युदंड का खुलकर विरोध किया।

मृत्युदंड का अंत और एमनेस्टी इंटरनेशनल की प्रतिक्रिया

जिम्बाब्वे में आखिरी बार 2005 में किसी को फांसी दी गई थी। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इस फैसले को “आशा की किरण” बताया है। संगठन के अनुसार, केन्या, लाइबेरिया और घाना जैसे अन्य अफ्रीकी देश भी मृत्युदंड समाप्त करने की दिशा में प्रयासरत हैं। दुनिया भर में 113 देशों में मृत्युदंड पूरी तरह समाप्त हो चुका है, जिनमें 24 अफ्रीकी देश शामिल हैं।

चीन बना सबसे बड़ा जल्लाद

एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में मृत्युदंड के मामलों में 2022 की तुलना में भारी वृद्धि हुई है। दुनिया में सबसे अधिक मृत्युदंड के आंकड़े चीन से जुड़े हैं। इसके अलावा, 2023 में दर्ज कुल मृत्युदंड के 90 प्रतिशत मामले ईरान और सऊदी अरब में सामने आए। इनके बाद सोमालिया और अमेरिका का स्थान आता है।

दुनिया में मृत्युदंड पर एक नजर

एमनेस्टी के मुताबिक, दुनिया के लगभग तीन-चौथाई देशों में अभी भी मौत की सजा दी जाती है। हालांकि, जिम्बाब्वे जैसे देशों के फैसले से मानवाधिकारों के प्रति एक सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहा है।

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