नई दिल्ली। चीन के साथ समझौतों के बावजूद भारत सीमा पर सतर्कता बनाए रखेगा। इसी के तहत भारतीय सेना ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर हल्के टैंकों की तैनाती की तैयारी शुरू कर दी है। डीआरडीओ और एल एंड टी द्वारा विकसित हल्का टैंक ‘जोरावर’ को ऊंचे और कठिन इलाकों में तैनात किया जाएगा। सेना ने जोरावर के परीक्षणों का पहला चरण पूरा कर लिया है, जबकि जल्द ही इसके ऊंचे और ठंडे क्षेत्रों में परीक्षण किए जाएंगे।
जोरावर टैंकों की विशेषताएं
जोरावर टैंक का वजन लगभग 25 टन है, जिससे इसे ऊंचे और कठिन क्षेत्रों में तैनात करना आसान होगा। यह बिना सड़क वाली जगहों पर 35-40 किमी/घंटा की रफ्तार से और सड़कों पर 70 किमी/घंटा की रफ्तार से चल सकता है। यह टैंक भारत के पारंपरिक टी-72 (41 टन) और टी-90 (46 टन) टैंकों की तुलना में कहीं हल्का है। वजन कम होने के कारण इनकी गतिशीलता बेहतर होती है और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में प्रदर्शन उत्कृष्ट रहता है।
चीन के टैंकों से मुकाबला
सेना के सूत्रों के अनुसार, जोरावर टैंक को खासतौर पर चीन से मुकाबले के लिए डिजाइन किया गया है। 2020 में गलवान घाटी के टकराव के दौरान चीन ने एलएसी के पास हल्के टैंक तैनात किए थे, जिससे भारत को भी हल्के टैंकों की जरूरत महसूस हुई। जोरावर की तैनाती से भारतीय सेना को सीमावर्ती इलाकों में सामरिक बढ़त मिलेगी।
पिछले परीक्षण और आगे की योजना
जोरावर टैंकों का पहला परीक्षण सितंबर में राजस्थान के रेगिस्तानी इलाके में किया गया, जो सफल रहा। अब दूसरे चरण में इन टैंकों का परीक्षण ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ठंडे मौसम में किया जाएगा। डीआरडीओ ने दावा किया है कि टैंक ने अब तक सभी मानकों पर खरा प्रदर्शन किया है।
भारत-चीन समझौता और सैन्य तैनाती
पूर्वी लद्दाख के डेमचोक और देपसांग जैसे टकराव बिंदुओं से सैनिकों की वापसी अंतिम चरण में है। समझौते के तहत भारत ने इन क्षेत्रों से अपने उपकरण हटाने शुरू कर दिए हैं, लेकिन अन्य विवादित क्षेत्रों को लेकर बातचीत अभी भी जारी है। सेना ने स्पष्ट किया है कि समझौते के बाद गश्त जल्द ही बहाल की जाएगी।
354 जोरावर टैंकों के निर्माण का अनुबंध डीआरडीओ और एल एंड टी को दिया गया है। इनकी तैनाती से भारत को चीन के साथ लगती सीमाओं पर रणनीतिक रूप से मजबूत स्थिति मिलेगी।