ओटावा: कनाडा में 1985 में हुए कनिष्क बॉम्बिंग मामले की जांच फिर से खोलने की मांग उठ रही है। खालिस्तानी आतंकियों द्वारा 23 जून 1985 को एयर इंडिया फ्लाइट-182 में किए गए इस बम धमाके में 329 लोगों की मौत हो गई थी। अब इस मामले में खालिस्तानी आतंकियों को क्लीन चिट देने के प्रयास हो रहे हैं।
कनाडा के हिंदू सांसद सुख धालीवाल ने अपनी ही लिबरल पार्टी पर नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा कि पहले की दो जांचों में खालिस्तान आतंकियों को इस हमले के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था, लेकिन अब संसद पोर्टल पर एक नई जांच की मांग की जा रही है, जो एक विवादास्पद कॉन्सपिरेसी थ्योरी को बढ़ावा देती है।
दूसरी जांच में यह पाया गया था कि खालिस्तान समर्थक आतंकियों ने इस हमले को अंजाम दिया था, जबकि पहली जांच में भी यही तथ्य सामने आया था। अब नई याचिका भारत सरकार के एजेंट्स को बम धमाके के लिए जिम्मेदार ठहराने की कोशिश कर रही है, जिसे कनाडा सरकार पहले ही नकार चुकी है।
सांसद चंद्रा आर्य ने कहा कि 39 साल पहले एयर इंडिया फ्लाइट-182 को कनाडाई खालिस्तान चरमपंथियों द्वारा लगाए गए बम से उड़ाया गया था, जो कनाडा की सबसे बड़ी सामूहिक हत्या है। उन्होंने यह भी कहा कि इस हमले की जिम्मेदारी खालिस्तान चरमपंथियों की विचारधारा पर है, जो आज भी कुछ लोगों के बीच जिंदा है।
आर्य ने हमले में मारे गए लोगों के परिवारों का समर्थन करते हुए कहा कि नई याचिका पुराने घावों को फिर से हरा सकती है। कनाडा की सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जॉन सी. मेजर ने अपनी पुस्तक *ए कैनेडियन ट्रेजेडी* में लिखा है कि ऑपरेशन ब्लू स्टार के कारण सिख चरमपंथियों ने प्रतिशोध में बम धमाका किया था, जो इस दावे को खारिज करता है कि बम धमाके में भारतीय एजेंट्स शामिल थे।
यह नई मांग कनाडा में सुरक्षा और आतंकवाद के मुद्दे पर एक महत्वपूर्ण चर्चा को जन्म दे रही है, जबकि पहले की जांचों के निष्कर्षों को चुनौती दी जा रही है।